Tuesday, August 16, 2011

लोकतंत्र के नाम पर थोपा गया राजतंत्र.

             शहीदेआजम भगत सिंह ने कहा था कि...."कांग्रेस पार्टी केवल सत्ता हासिल करना चाहती है उसे इस देश कि स्वतंत्रता से कोई लेना देना नहीं है. यदि कांग्रेस पार्टी के रास्ते से स्वतंत्रता प्राप्त हुई तो ये गोरे अंग्रेज तो चले जाएँगे पर इस देश पर काले अंग्रेजो राज करेंगे. आमिर और अमीरे होगा और गरीब और गरीब होता चला जायेगा." भगत सिंह के सपनो का भारत था  " जिसमें हर आदमी को सामान अधिकार मिले धर्म और मजहब के नाम पर खून खराबा ना हो जहा कोई गरीब ना हो कोई, बेरोजगार ना हो, कोई भी आदमी किसी भी कमजोर और मजदूर का हक न छीन पाए." 
        ये आज हमें सोचना है कि क्या हम भगत सिंह के सपने के लोकतंत्र में जी रहे है ? क्या इसे समानता कहते है जहा गली के नुकड़ पर शराब बेचने वाले को जेल में डाला जाता है और किंगफिशर के मालिक विजय माल्या को संसद सदस्य बनाया जाता है ? और जिसका इंतजार इस देश के राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री अपने घर पर आने के लिए करते है ? क्या यह वही लोकतंत्र है जहा श्री अब्दुल कलाम जी जेसे मूर्धन्य लोग जिन को कि भारत रत्ना से नवाजा गया था, को हराकर एसे लोगो को राष्ट्रपति बनाया जाता है जो गांधी परिवार के वफादार है.  
                 इसे लोकतंत्र कहा जायेगा जहा शांति पूर्ण रूप से अपनी बात रखने वालो को जेल में डाला जाता है. वास्तविकता यह है कि हम लोगो ने एक हजार साल कि गुलामी झेली है, और हम आज भी गुलाम है, भारत का ये दुर्भाग्य है कि कहने को आज लोकतंत्र है पर वह राज तंत्र के सामान है जहा किसी को भी सरकार के खिलाफ बोलने का कोई अधिकार नहीं है, भारत ने वो राज तंत्र भी देखा था जब राम को वनवास हुआ और पूरी जनता आपने राजा के खिलाफ खड़ी हो गई थी, वह राज तंत्र में लोकतंत्र के एक सुनहरा उदहारण है, एक समय था जब राज दरबार में सीता और कोशल्या को स्थान दिया जाता था और आज हमारा लोकतंत्र इस देश कि आधी आबादी रखने वाली नारी को 33 % आरक्षण नहीं दिला पाया. वास्तविकता ये है कि हजार साल कि गुलामी ने हमें ये भुला दिया है कि हम क्या है. जब तक हम अपने आप को नहीं जानेगे अपने भारत और इसके इतिहास पर गर्व नहीं करेंगे तब तक समस्या जस कि तस रहने वाली है. आज एक रामदेव और एक अन्ना खड़े हुए तो ये सरकार हिल गई तो सोचो 120 करोड़ भारतीय जब चिलाएंगे तो सरकार को हमारी आवाज सुननि ही पड़ेगी.  
       
          शहीदों कि चिताओं पर लगेंगे हर बरस युही मेले, वतन पे मरने वालो का बस यही आखिरी निशा होगा. क्या हमारे शहीदों ने इस लिए क़ुरबानी दी थी कि हम 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाये और उस के ठीक अगले दिन अपने लोकतंत्र का गला घोट दे. आज हमें सोचना है कि हमें शहीदेआजम भगत सिंह के सपनो का भारत चाहिए या लोकतंत्र के नाम पर थोपा गया राजतंत्र.