Tuesday, June 7, 2011

हर आँख सपना सुहाना ढूंढ़ लेती है...


मेरी खामोशियो मै भी फ़साना ढूंढ़ लेती है,
बड़ी जालिम है ये दुनिया बहाना ढूंढ़ लेती है,
हकीकत जिद किये बैठी है चकनाचूर करने को
फिर भी हर आँख सपना सुहाना ढूंढ़ लेती है...

ना चिड़िया की कमी है ना कारोबार है कोई,
फिर भी होंसलो से आबोदाना ढूंढ़ लेती है,
क्या जाने ये दुनिया मस्त हाल मंसूर का,
जो सूली पर भी हसना मुस्कुराना ढूंढ़ लेती है...

उठती है जो खतरा डूब जाने का ,
वही कोशिष समंदर मै खजाना ढूंढ़ लेती है,
जुनू मंजिल का बचाता है भटकने से,
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना  ढूंढ़ लेती है.....

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